Wednesday 5 November 2014

कैंटीन से किचेन तक


गजब था बिकुआ। उसे पता था सर पे बचे-खुचे बाल भी नोच  दिए जायेंगे अगर वो रात को घर लेट से पहुँचा. फिर भी वो लगातार तीन दिन से लेट ही घर पहुंच रहा था. 

अब क्या करे वो भी. काम इतने आ पड़े थे, उसे जल्दी घर आने को नही मिलता। 

"अगर रोज रोज लेट से घर पहुंचोगे तो मार तो पड़ेगी ही," उस शाम रेलवे स्टेशन पे कैंटीन में खाते-खाते वो वार्निंग दी थी. 

कॉलेज में प्लेसमेंट होने के बाद बिकुआ नौकरी जॉयन करने जा रहा था. थोड़ी देर में ट्रेन आने वाली थी. पुरे ट्रेन में भरकर यादें ले  जा रहा था, और वो कॉलेज लौटने वाली थी. प्लेसमेंट उसका भी हो चूका था. लेकिन वो दो महीने बाद जॉयन करती.                       

बातें करते-करते दोनों स्टेशन एरिया में आ गए. अचानक से वो जोर से उछल पड़ी, चिल्लाते हुए. "
​चूहा, चूहा
." 

बिकुआ का हाथ पकड़ ली. बहुत जोर से. पहली बार. और बिकुआ को लगा था, वो हाथ उसके हाथ में थीं.आख़िरी बार.  

ट्रेन खुल गयी. दोनों के होठ मुस्कुरा रहे थे.चेहरा दिल को दगा देने का असफल प्रयास कर रहा था. और आँखें इशारे कर रही थी. पूरा कॉलेज खत्म हो गया था. और आज उनकी पहली मुलाकात थी.                  

 वो हॉस्टल लौट गयी. उसे आज ये अहसास हो रहा था, हंस तो वो किसी के भी साथ सकती थी, लेकिन रोना तो बस बिकुआ के  कारण ही सम्भव था.   

 इधर ट्रेन पे सवार बिकुआ बहुत दूर चल आया था. इतना दूर की ऑफिस से लौटने में लगभग हर रात लेट हो जाता था. एक तो शाम चार से रात बारह वाली नौकरी थी.  और उसपे लेट. एक तो बज ही जाते थे.   
 
 बिकुआ को पता था दरवाजा खोलने कोई नहीआने वाला. बिना डोरबेल बजाये दरवाजा खोला. और किचेन में चला गया. आमलेट बनाने.         

"तौलिये में आग पड़ रही है. पानी डाल दो," वो किचेन के बाहर खड़ी थी.    

"हाँ. डाल देता हूँ."

"ये आग है न, ये तो पानी से बुझ जाएगी। लेकिन जब अगन लगी हो तो उसके लिए बरसात की जरुरत पड़ती है," बिना उसकी तरफ देखते बिकुआ बोला.

"लेकिन तुन जब तक आते हो तब तक तो बरसात का मौसम बीत चूका होता है. और...." वो इतना बोलते-बोलते चिल्ला पड़ी, "चूहा.....चूहा."

और अगले ही पल वो दौड़ के किचेन में आ गयी. किचेन बहुत बड़ा था. लेकिन जब वो अंदर आयी तो बिकुआ के आगे-पीछे इतनी जगह नही बची की वो ठीक से खड़ा हो सके. 

स्टेशन याद आ रहा था बिकुआ को. जब पहली बार उसका हाथ बिकुआ के हाथों में थे.    

"मैं कितनी दिन से बोल रही हूँ. चूहा मारने वाली दवा क्यों नही लाते?"

"ताकि बिना मौसम ही तुम यूँ ही बरसती रहो और मैं भीगता रहूँ," बिकुआ झट से बोला. 

"सारे बाल नोच लुंगी तुम्हारे सर के. याद है या नही स्टेशन वाली वार्निंग," वो धीरे से बिकुआ के कानों में बोली.

"एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ी हो, दुसरा हाथ की अंगुली से सर को सहला रही हो, अपने पैर से मेरे अंगूठे को दबा रखा है, और तुम्हारी धक-धक किचेन से बाहर तक सुनाई दे रही है.  सर के बाल उखाड़ने का होश है?"

"बहुत मारूंगी तुमको. नानी मरे उस चूहे की."  

    

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