Friday 17 April 2015

तुम्हारे सिगरेट मेरे दारू

"यार बहुत सेक्सी लगती है. जब तुम सिगरेट सुलगाती हो. और कश खींचती हो. तुम्हारी आँखें बंद हो जाती है. और गाल पे डिम्पल. बहुत अच्छे लगते हैं."   
वो उसे कहना चाहता था. लेकिन कह नहीं पाता. 
सिगरेट नहीं पीता था लेकिन मार्किट जाते समय दो-तीन बार वो उससे सिगरेट लेन को बोली थी. लड़कियों को मुश्किल होती थे सिगरेट खरीदने में उस इलाके में.
"चलो तुम सिगरेट पकड़ो मैं लाइटर जलाता हूँ." लगभग एक हफ्ते सिगरेट लेन के बाद आज पहली बार वो उसे बोला.
वो हंस दी.
"तुम भी पिओगे क्या आज?"
"नहीं. मैं नहीं पिऊंगा. मैं तुमको बस पीते देखूंगा."
उसे उसके बाल भी अच्छे लगते थे. छोटे थे. लेकिन ऐसे कटे थे कि देखने से पहले उसे अपनों बालों से आँखों को आजाद करना पड़ता था और कानों पे रखना पड़ता था. वो ये भी नहीं बोल पाया था.
लास्ट सेमस्टर था. क्लास की एक गेट-टूगेदर थी.
"सुनो. आज मेरे पास सिगरेट है. तुम लाइटर जला दोगे? " और वो उसे खिंच के बालकनी में ले गई. 
"ये क्या हो गया है तुम्हें. हिल क्यों रहे हो? पी लिए हो क्या?"
"हाँ मेरी जान. पी लिया हूँ. और तुम भी पीयो न. लाइटर मैं जलाता हूँ. बहुत सेक्सी लगती हो जब पीती हो. आँखें बंद हो जाती है तुम्हारी. और गाल पे डिम्पल पड़ जाते हैं."   
वो जोर से हंसने लगी.
"तुम हंसो मत डार्लिंग. आई लभ यू."
"अरे ठीक है बाबा. आई लभ यू टू. लेकिन तुम जाओ अभी सो जाओ."
"जब दारू नहीं संभाल पाते तो पी क्यों लेते हो?" अगली शाम वो पूछी.
"अरे सॉरी. सॉरी. पता नहीं क्या क्या बोल गया कल. नशे में."
सेमेस्टर खत्म. सिगरेट का सिलसिला खत्म. 
एक ही शहर में नौकरी करने लगे दोनों. और एक दिन मिलने का प्लान हुआ.  एक रेस्त्रां में.
"एक बात पता है?" वो लाइटर जलाते हुए पूछा।
"क्या?"
"मुझे तुम्हारे बाल बहुत अच्छे लगते हैं. जब तुम उन बालों से अपने आँखों को आजाद करती हो, कान को उनकं ग़ुलाम बनती हो और देखती हो. मेरी तरफ."
"तो आज तक बोले क्यों नहीं?"
"क्यूंकि डरता था."
"किस चीज से?"
"दिमाग में स्टीरिओटाइप बैठा था. लड़की है. सिगरेट पीती है. दारू भी पीती होगी. मुँह्फट होगी. कुछ बोल दिया और उल्टा सीधा मान गयी तो गरियाये देगी पुरे कॉलेज के सामने." 
"तो तुमको क्या लगता है नहीं गरिया सकती तुमको मैं अभी?" अपनी याद में पहली बार आधी पी सिगरेट उसने पानी में डाल दी और बालों से आँखों को आजाद करते हुए बोली.
"चिरकुट लड़का. पहले बोल देते की मेरे सिगरेट पीने के अलावे भी तुमको मेरे में कुछ अच्छा लगता है तो बिना मतलब हर शाम अपने फेंफड़े नहीं जलाती. अब चाभी दो."
"किस चीज का?"
"मैंने तो गाड़ी की मांगी. चाहो तो घर की भी दे सकते हो."
चल दिए दोनों. साथ में. घर और गाड़ी की ही नहीं अब तो तिजोरी की भी चाबी वही रखती थी.
उस दिन जो बील पे किया सिगरेट और दारू पे दिया गया उन दोनों का आखिरी बिल था.    

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