Saturday 15 March 2014

साक्षात्कार जिंदगी से ....


आज पता चला था पांच सालों से जिस रास्ते पे हम चलते आ रहे थे वो रेत का था. बहुत मुश्किल से कदम बढ़ पाये थे. 

लेकिन आश्चर्य की बात ये थी बालू पे भी हमारे क़दमों के निशान नही बन पाए.

हाँ जो घर हमने बनाया था एक ही झटक में ढह गया, रेत का जो था.  

घर ढह गया और मै बेघर हो गया, भटकने लगा. पीछे लौटना चाहता था, उस मोड पे जिस मोड पे हम पहली बार मिले थे. फिर से जिंदगी शुरू करना चाहता था.

लेकिन क़दमों के निशान के अभाव में रास्ता भटक गया. वो तो हाथ छोड़ दी थी, भटकते गया.

जब मै अकेले ही वीराने चलता गया पीछे से किसी ने बोला, “धप्पा”.

मैंने देखा तो जिंदगी थी मेरे पीछे.

मैंने पूछा, अब तक मै तुमको समझ नही पाया. कहाँ थी आज तक?

बोली, "मै तो बस चलती जाती हूँ. ठहरती कहाँ? कभी यहाँ, कभी वहाँ. तुम मुझे खोजते हो जहाँ, मै कभी नही मिलूंगी वहाँ. कूदते-फांदते रहो. खेलते-खेलातो रहो. रोओगे तो मै कभी नही मिलूंगी."

“मै समझा नही कहना क्या चाहती हो तुम?

"मै हँसने में हूँ, हँसाने में हूँ. मै इशक में हूँ, मै प्यार में हूँ. मै भय में नही मै निराशा में नही. मै साहस में हूँ मै आशा में हूँ. मैं जिंदगी हूँ."

अच्छा तो ऐसा क्या करूँ तुम सदा मेरे साथ रहो.

"तुम्हारे साथ मैंने कई पड़ाव पार किये है. तुमको परेशां देखा है. हताश देखा है निराश देखा है. तुमको रोते देखा है, तुमको बिलखते देखा है. और जब भी तुमने वैसा किया है. मै चली गयी हूँ दूर तुमसे. तुम्हे कभी पता नही चला. और आज जब वो चली गयी मै फिर से आयी हूँ तुम्हारे पास. ये सब छोडो. जी लो मुझे."

मैंने जिंदगी से कहा, "अभी मैंने तुम्हें समझना शुरू ही किया और तुम इतने पड़ाव पार कर चुकी हो.”

जिंदगी ने कहा, “लेकिन वो पड़ाव ही थे. मुकाम तक तो साथ - साथ ही जायेंगे --मै और तुम.." 

मैंने जिंदगी की बाँहों में अपना बाँह डाला और हम साथ साथ चल पड़े.
जिंदगी के साथ जिंदगी की ओर, जीने की ओर.  


Saturday 8 March 2014

कह डालिये आज.....अच्छा लगेगा माँ को भी, आपको भी

"देखना दिल्ली है. नए नए गए हो तुम. ज्यादा जानते नहीं हो इस शहर के बारे में. कार ठीक कर लेना स्टेशन से होटल तक. और एसी होटल में ही रहना. कम्पनी वाला तो अगले महीने से पैसा देगा न. अभी तो जो मेरे पास था दे दिया है. पापा से बोल दूंगी कल पैसा डाल देंगे बैंक में. इस महीने घर में दूध नहीं मंगाऊंगी. तुम चले ही गए कौन खायेगा दूध."

दिल्ली स्टेशन पे उतरते ही माँ का फोन आया था.

"कम्पनी वालों ने कार भेजी है माँ. होटल का कमरा भी उन्होंने ठीक कर रखा है," रौनक बोला.

"अच्छा ठीक है. होटल पहुँचते ही फोन करना."

"ठीक है रखो. सामने कार वाला मेरे नाम का बोर्ड ले के वेट कर रहा है."

अभी गाड़ी दो मिनट भी नही चली थी की फिर से रौनक का फोन बज उठा.

"क्या माँ तुम भी न. अभी बात किया न. मोबाइल रोमिंग में है. फिर भी तुम फोन किये जा रही हो. क्या बात हो गयी?"

"अरे मैं बोल रही थी कुछ ड्राई फ्रूट्स ले लेना आज. मैंने खरीदा था. उसे बैग में रख भी दिया था. पर वो बैग तुमने घर ही छोड़ दिया."

"ठीक है अब रखो फोन. और फोन मत करना. मैं खुद करूँगा होटल पहुँच के." रौनक ने झट से फोन रख दिया.

होटल में पहुँच गया. और अपने काम में व्यस्त हो गया. काम क्या, अपने दोस्तों के साथ वाट्सएप, मेसेज और फेसबुक करने में लग गया.

"मारुती में नौकरी लगी है. और कम्पनी वालों ने दिल्ली में एक महीने की ट्रेनिंग में भेजा है."

वो भूल गया था कि उसने माँ को बोला है होटल में पहुँच के फोन करने को. रात्रि के 11 बज गए.

झारखण्ड के सुदूर एक गाँव में उसकी माँ रहती थी. उस गाँव में लोगों के लिए आठ बजे के बाद जागने रहना एक घटना होने के समान था.

लेकिन रौनक कि माँ अभी भी जगी थी. वो फोन का इन्तजार कर रही थी. और जब 12 बजने को हुआ तो खुद ही फोन मिला दिया. फोन बीजी मिला.

वो लगातार 1 नंबर दबाते रहीं. दिल्ली जाने के पहले रौनक से उन्होंने बोला था "बेटा कुछ ऐसा कर दो मैं केवल एक बार बटन दबा के तुमको फोन लगा सकूँ. तुमको तो पता ही है मुझे नंबर पढ़ने नही आते."

रौनक ने स्पीड डायल में 1 नंबर पे अपना फ़ोन नंबर लगा दिया था.

वो अपनी दोस्त से बात कर रहा था. माँ का फोन बार-बार आने से वो बहुत गुस्सा था.

"अरे सुनो माँ का फोन बार-बार आ रहा है. मै तुरत तुमको फोन करता हूँ. और उसने दोस्त का फोन काट के माँ को फोन लगाया."   

"क्यों फोन कर कर के इतना परेशान करती हो माँ? रात के 12 बजे भी तुम चैन से नही छोडती." वो तिलमिलाते हुए बोला.

"अरे मैं तो बस ये पूछ रही थी कि तुमने खाना खा लिया. और सोने से पहले ओडोमास लगाया कि नही. तुम्हारी तबियत जल्दी बिगड़ जाती है न नए जगह पे."

"सब कर लिया. और अब रखो फोन मुझे सोने दो," रौनक झल्लाते हुए बोला.

"होटल रूम एसी है न? और बाथरूम वगैरह साफ़ है न?" माँ ने फोन रखने से पहले पूछ लीया.

"आ के तुम खुद क्यों नही देख लेती?" वो बोला और तुरत फोन काट दिया.

एक महीने बाद जब ट्रेनिंग ख़तम हो गयी तो रौनक को कोलकाता जाना था. ट्रेन धनबाद हो के जाने वाली थी.

माँ को ये बात पता थी. लेकिन उसके डर से वो ये नही पूछ पा रही थी कि "मैं धनबाद स्टेशन पे तुमसे मिलने आऊँ."

और जब एक दिन पूछा तो रौनक ने उखड़ते हुए कहा, "क्युँ आओगी तुम? टाइम नही है मेरे पास. ट्रेन भी बस तीन मिनट रुकती है."   

"तीन मिनट में तुमको  देख लेंगे हम दोनों. और नौकरी के बाद जो प्रसाद चढ़ाया था भगवान् को वो भी लेते जाना."

"नहीं। कोई जरुरत नही है वहाँ आने की."  

कोलकाता के लिए ट्रेन खुलने वाली रात से ही रौनक का पेट ख़राब हो गया था. लेकिन वो ट्रेन नही छोड़ सकता था. क्यों कि फिर उसे खुद से टिकट करा के कोलकाता जाना पड़ता.

और इसके लिए उसके पास पैसे नही थे. वो ट्रेन पकड़ लिया.

ट्रेन में उसकी तबियत बिगड़ती गयी. वो 16 घंटे से कुछ खा नही पाया था. डिहाइड्रेशन हो गया उसे. माँ की बहुत याद आ रही थी.

माँ को फोन भी किया. धनबाद पहुँचने में अभी भी ट्रेन को २ घंटे लगते. वो चाहता तो माँ को बुला सकता था मिलने के लिए. लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी.         

रौनक के पापा को उसके ट्रेन कि टाइमिंग और उसका बर्थ डीटेल पता था.

उसकी माँ बिना उसे बताये उसके पापा के साथ स्टेशन पे पहुँच ही गयी. और दोनों उसके डब्बे में बर्थ पे खुद पहुँच गए.

वो गुमसुम सा बैठा था. जब तक माँ उसके पास पहुंची ट्रेन ने खुलने का हार्न दे दिया था. और रौनक गेट तक उनके साथ आया.

"इसमें प्रसाद है. और इसमें नमकीन है. नमकीन बहुत थोडा सा है. कम ही लायी हूँ. डर रही थी तुम कहीं गुस्सा न हो जाओ."

माँ पापा नीचे खड़े थे. रौनक ट्रेन के गेट के पायदान पे बैठा था. डिहाइड्रेशन कि वजह से खड़ा हो पाने की शक्ति नही जुटा पा रहा था.

ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली थी. और रौनक के आँखों से जो पानी गीरे वो ट्रेन कि हवा कि रफ़्तार में कहीं उड़ गए.

आज मेरी रौनक से बात हुयी तो बोल रहा था, "मैं घर जा रहा हूँ. माँ को पता नही है आज विमेंस डे है. और उनको फोन कर के बताया नही हूँ. सरप्राइज दूंगा. आज तक तो नही बताया आज बताऊंगा की माँ मैं भी करता हूँ तुमसे प्यार." 

मैंने कुछ नही कहा. फ़ोन रख दिया. और सोचा आपसे ये कहानी शेयर करूँ. रौनक कि तरह हम में से बहुत हैं जो माँ को बहुत प्यार करते हैं. बस कहते नही हैं.

कह डालिये आज. अच्छा लगेगा माँ को भी आपको भी.