आज सुबह की ताजगी थोड़ी बाशी-बाशी सी लगी
दोपहर में सूरज भी बुझा-बुझा सा लगा
शाम में जो हवा चल रही थी उसमे एक सुस्ती सी थी
रात भी आज कम गहरी लग रही है.....
हर तरफ एक गजब सी ख़ामोशी सी है
उस ख़ामोशी में एक अजीब सी चीख है
जो कहती है अब जागना नही पड़ेगा साढ़े सात बजे
अब नहीं लगेंगे मेले साढ़े नौ बजे टीवी रूम में.....
सब कुछ में एक अजीब सा अनजानापन है...
देखा-देखा सा लगता है क्लास रूम नंबर 1
लेकिन अब वो मुझे स्वीकार करने को तैयार नहीं है
बहुत अपना-अपना सा है 'माइंड स्पेस'
लेकिन अब वो हमें झेलने को तैयार नहीं है.....
ये जो चेहरे हैं इतने सारे, सब जाने-पहचाने हैं
कल तक वो साथ बैठते थे रेडियो क्लास में, पेपर छापने में
लेकिन वो आज आँखों में देख नही पाते एक-दूसरे के
डरते हैं, भावनाएं कहीं किनारों को तोड़ के बाहर छलक न पड़ें......
एक बिखराव सा पनप रहा है रिश्तों में
कल तक जो दिन भर साथ रहते थे, दोस्त थे
आज बेगाने प्रतित हो रहे हैं
अपने कमरों में बंद हैं
पढाई नही कर रहे
शायद अभ्यास कर रहे हैं अलग रहने का
एक सन्देश है इन सबमें
अब हम आईआईएमसी के नहीं रहे
आईआईएमसी हमारा न रहा
अब हम अलुमनी हो गए
अब हम वर्तमान नही रहे ...हम इतिहास हो गए....
बस एक आग्रह हैं समय से.
ये जो रास्ते हैं रेत के, जिनपे हमारे क़दमों के निशां हैं
उन निशानों को वहीँ रहने देना, उन्हें मिटाना नहीं
ताकि हम कभी खुद को जीना चाहें, तो भटकना न पड़े.
दोपहर में सूरज भी बुझा-बुझा सा लगा
शाम में जो हवा चल रही थी उसमे एक सुस्ती सी थी
आप हमें ही देख रहे हैं न मृणाल सर? (अंकित गौतम फोटोग्राफी) |
हर तरफ एक गजब सी ख़ामोशी सी है
उस ख़ामोशी में एक अजीब सी चीख है
जो कहती है अब जागना नही पड़ेगा साढ़े सात बजे
अब नहीं लगेंगे मेले साढ़े नौ बजे टीवी रूम में.....
सब कुछ में एक अजीब सा अनजानापन है...
देखा-देखा सा लगता है क्लास रूम नंबर 1
लेकिन अब वो मुझे स्वीकार करने को तैयार नहीं है
बहुत अपना-अपना सा है 'माइंड स्पेस'
लेकिन अब वो हमें झेलने को तैयार नहीं है.....
ये जो चेहरे हैं इतने सारे, सब जाने-पहचाने हैं
कल तक वो साथ बैठते थे रेडियो क्लास में, पेपर छापने में
लेकिन वो आज आँखों में देख नही पाते एक-दूसरे के
डरते हैं, भावनाएं कहीं किनारों को तोड़ के बाहर छलक न पड़ें......
एक बिखराव सा पनप रहा है रिश्तों में
कल तक जो दिन भर साथ रहते थे, दोस्त थे
आज बेगाने प्रतित हो रहे हैं
अपने कमरों में बंद हैं
पढाई नही कर रहे
शायद अभ्यास कर रहे हैं अलग रहने का
फोटो: प्रीती मिश्रा के फेसबुक प्रोफाइल से |
एक सन्देश है इन सबमें
अब हम आईआईएमसी के नहीं रहे
आईआईएमसी हमारा न रहा
अब हम अलुमनी हो गए
अब हम वर्तमान नही रहे ...हम इतिहास हो गए....
बस एक आग्रह हैं समय से.
ये जो रास्ते हैं रेत के, जिनपे हमारे क़दमों के निशां हैं
उन निशानों को वहीँ रहने देना, उन्हें मिटाना नहीं
ताकि हम कभी खुद को जीना चाहें, तो भटकना न पड़े.
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