दिसम्बर की वो ठंडी सुबह और भी सर्द हो गयी थी. बारिश हो रही थी, लगातार. पटना स्टेशन पे ट्रेन से उतर मैं इन्तजार करने लगा था, बारिश के छूटने का. एक्ज़ाम के बाद छुट्टियाँ हुई थीं.
बारिश बंद हुई तो मैं स्टेशन के बाहर आया. उस मंदिर के आगे हमेशा कि तरह कुछ "भिखारी" बैठे थे. 'पटना में भिखारियों की समस्या' पे मुझे प्रोजेक्ट करना था, सोचा उनसे कुछ बात की जाये.
महावीर मंदिर के पास उस जगह पे भिखारियों का बैठना एक आम सी बात हो गयी है. कई सालों से मै देखता हूँ वो जगह ऐसी ही है. हाँ कभी उनसे बात करने का प्रयास नही किया.
लेकिन आते-जाते, उस दिन से पहले, उस जगह पे बैठ किसी भी भिखारी को रोते नही देखा था. उस दिन सबसे अलग बैठे एक बच्चा लगातार रोये जा रहा था. आवाज नही आ रही थी उसके गले से, आँखें बह रही थी.
बारिश से बचने के लिए एक छोटे से पॉलीथिन पे बैठा था. और उसी पॉलीथिन का एक हिस्सा अपने सर पे रखा था.
उसके पास गया, उसने झट से आँसू पोछ लिए . सर्दी में कांपते हुए एल्मुनिआ वाला छोटा कटोरा मेरी तरफ बढ़ा दिया. दया आयी, मैंने झट से पॉकेट से ५ का एक सिक्का उसके कटोरे में गिरा दिया.
"नाम अरमान हे. आठ साल उमर हॆ . माए के चेहरा न देखली हे. कहिये मर गेल. बाप गांधी मैदान में ठेला पे भूँजा बेच हल. उ दिनवा हम पढ़े गेल हली. घरे ऐली त देखली बाबूजी न आएल हथ. ठेला के पास गैली त देखली भूँजा रोड पे छीँटाइल हे. ठेला ओने पलटाएल हे. उजर उजर चबेनी लाल हो गेल हेल. आ ओकर बाद से बाबूजी न आएल हे. लोग कहित हलन कि बम फट गेलइ हे."
जैसे मै उसके और पास गया वो कहने लगा था. अपने छोटे से बटुए से खुनी लाल रंग के भूँजा के दाने वो मुझे दिखाया.
"बाबूजी को बम लगा था क्या?" मैंने पूछा.
"न न. उ दिन रैली हलई न, ता नेता जी के साथ गेलन हे बाबूजी. हम सोचिथली २ नवम्बर के नेता जी के साथे आ जैतन बाकि न अइलन. कमाइत होएतन. फिर नेता जी अथिन ता आ जैतन."
आगे बोलने कि हिम्मत नहीं हुई मेरी. अपना थैला उठाया. पॉकेट से रुमाल निकाला. आँखों से आ रहे पानी को पोछते हुए ऑटो वालों कि तरफ बढ़ गया.
जिन्दगी आगे बढ़ गयी थी मेरी.
दो दिनों के बाद मै फिर से वहाँ आया था. प्रोजेक्ट रिपोर्ट जो बनाना था. इस बार अरमान कि तरफ जा नही पाया. बस इतना देखा, आज वो पोलिथिन पे नही बैठा था, पुरे पोलिथिन को ओढ़ लिया था. आज बारिश नही हो रही थी. अपना काम कर के मै कॉलेज लौट आया. प्रोजेक्ट सबमिट कर दिया. अच्छे मार्क्स भी मिलेंगे.
जैसेकि नेता रैली कर के लौट गए. और शायद अच्छे चुनावी रिज़ल्ट भी मिले.
फिर चुनाव आयेगा नेताजी फिर से वहाँ आयेंगे. मेरे जैसे और कई लोग वहाँ स्टोरी लिखने और प्रोजेक्ट करने भी जाएंगे. लेकिन इतना तो तय है कि उसके बाबूजी नही आयेंगे.
बारिश बंद हुई तो मैं स्टेशन के बाहर आया. उस मंदिर के आगे हमेशा कि तरह कुछ "भिखारी" बैठे थे. 'पटना में भिखारियों की समस्या' पे मुझे प्रोजेक्ट करना था, सोचा उनसे कुछ बात की जाये.
महावीर मंदिर के पास उस जगह पे भिखारियों का बैठना एक आम सी बात हो गयी है. कई सालों से मै देखता हूँ वो जगह ऐसी ही है. हाँ कभी उनसे बात करने का प्रयास नही किया.
लेकिन आते-जाते, उस दिन से पहले, उस जगह पे बैठ किसी भी भिखारी को रोते नही देखा था. उस दिन सबसे अलग बैठे एक बच्चा लगातार रोये जा रहा था. आवाज नही आ रही थी उसके गले से, आँखें बह रही थी.
बारिश से बचने के लिए एक छोटे से पॉलीथिन पे बैठा था. और उसी पॉलीथिन का एक हिस्सा अपने सर पे रखा था.
उसके पास गया, उसने झट से आँसू पोछ लिए . सर्दी में कांपते हुए एल्मुनिआ वाला छोटा कटोरा मेरी तरफ बढ़ा दिया. दया आयी, मैंने झट से पॉकेट से ५ का एक सिक्का उसके कटोरे में गिरा दिया.
"नाम अरमान हे. आठ साल उमर हॆ . माए के चेहरा न देखली हे. कहिये मर गेल. बाप गांधी मैदान में ठेला पे भूँजा बेच हल. उ दिनवा हम पढ़े गेल हली. घरे ऐली त देखली बाबूजी न आएल हथ. ठेला के पास गैली त देखली भूँजा रोड पे छीँटाइल हे. ठेला ओने पलटाएल हे. उजर उजर चबेनी लाल हो गेल हेल. आ ओकर बाद से बाबूजी न आएल हे. लोग कहित हलन कि बम फट गेलइ हे."
जैसे मै उसके और पास गया वो कहने लगा था. अपने छोटे से बटुए से खुनी लाल रंग के भूँजा के दाने वो मुझे दिखाया.
"बाबूजी को बम लगा था क्या?" मैंने पूछा.
"न न. उ दिन रैली हलई न, ता नेता जी के साथ गेलन हे बाबूजी. हम सोचिथली २ नवम्बर के नेता जी के साथे आ जैतन बाकि न अइलन. कमाइत होएतन. फिर नेता जी अथिन ता आ जैतन."
आगे बोलने कि हिम्मत नहीं हुई मेरी. अपना थैला उठाया. पॉकेट से रुमाल निकाला. आँखों से आ रहे पानी को पोछते हुए ऑटो वालों कि तरफ बढ़ गया.
जिन्दगी आगे बढ़ गयी थी मेरी.
दो दिनों के बाद मै फिर से वहाँ आया था. प्रोजेक्ट रिपोर्ट जो बनाना था. इस बार अरमान कि तरफ जा नही पाया. बस इतना देखा, आज वो पोलिथिन पे नही बैठा था, पुरे पोलिथिन को ओढ़ लिया था. आज बारिश नही हो रही थी. अपना काम कर के मै कॉलेज लौट आया. प्रोजेक्ट सबमिट कर दिया. अच्छे मार्क्स भी मिलेंगे.
जैसेकि नेता रैली कर के लौट गए. और शायद अच्छे चुनावी रिज़ल्ट भी मिले.
फिर चुनाव आयेगा नेताजी फिर से वहाँ आयेंगे. मेरे जैसे और कई लोग वहाँ स्टोरी लिखने और प्रोजेक्ट करने भी जाएंगे. लेकिन इतना तो तय है कि उसके बाबूजी नही आयेंगे.
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