मेरे गाँव के मुख्य सड़क के एक ऒर हनुमान जी का मंदिर है और दुसरी और चतुर्भुज भगवान का मंदिर . उससे लगभग 50 मीटर की दूरी पे पीर बाबा का मजार है. और उस मजार से 50 मीटर की दूरी पे मस्जिद।
पीर बाबा के मजार के पास एक छोटा सा खाली मैदान है. हमारे गाँव का होलिका दहन उसी छोटे मैदान में होता रहा है, जब से मैंने होश संभाला है. और उस मैदान के इस तरफ दशहरे का मेला लगता है. उसी मैदान में मुहर्रम का जलसा भी लगता है.
पीर बाबा के मजार के बगल में हाट लगता है..... मंगलवार को और शनिवार को. बचपन में मैं अपने पापाजी के साथ वहीँ सब्जी खरीदने जाता था. अब अकेले जाया करता हूँ, जब भी मौका मिलता है.
बहुत जरुरत है यहाँ उन हवाओं की. फोटो: एनडीटीवी |
बचपन में मेरे एक सर हुआ करते थे - इबादत हुसैन नाम है उनका। बाजार में उनसे कभी मुलाकात हो जाती थी, तो मैं इबादत में सर झुका लेता था और पापाजी "प्रणाम मास्टर साहब बोला करते थे करते थे." सर उमर में मेरे पापाजी से पापाजी से काफी छोटे हैं.
बगल के गाँव का नाम कोसिहान है, जहाँ इबादत सर का घर है. मेरे कई क्लासमेट्स, सीनियर और जूनियर जैसे की फ़िरोज़, उसका भाई अफरोज उसी गाँव से आते हैं. हमारे पापाजी के दोस्त अशोक भी उसी उसी गाँव से हैं.
मैं चाहता हूँ मेरे गाँव के बाजार से चली हवाएं मुजफ्फरनगर, अयोध्या और सहारनपुर होते हुए त्रिलोकपुरी तक आ जाएं. बहुत जरुरत है यहाँ उन हवाओं की.
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