Thursday, 13 February 2014

दंगे, सेंटर फ्रेश और प्यार

मुज़फ्फरनगर की गलियों में खेलते-कूदते रेहान कब बड़ा हो गया उसे पता ही नहीं चला. अपने बड़े होने का एहसास पहली बार उसे तो तब हुआ जब अम्मी ने कहा था, "बेटा, रोते नहीं. देखो तो रेखा तुमसे छोटी है और दो महीने पहले से ही स्कूल जा रही है
पढ़ोगे तब तो दुनिया से संघर्ष कर के आगे बढ़ सकोगे." 

"मुझे नहीं संघर्ष करना है किसी से अम्मी. मुझे नहीं बड़ा होना है. मुझे स्कूल नहीं जाना है. मुझे अपने हाथी, घोड़े, राजा, रानी से दूर नही जाना है. बस और कुछ नहीं। अम्मी! मुझे स्कुल भेज दोगी तो मुझे सेंटर फ्रेश कौन खिलायेगा?"       

लेकिन अगले सुबह अब्बू ने साईकिल से उसे स्कुल पहुंचा ही दिया. अब्बू साइकिल मोड़े और चल पड़े. रेहान को लगा काश वो दौड के अब्बू को पकड़ पाता। "मुझे नही पढ़ना अब्बू। मुझे दिन भर अम्मी से दादी से दूर नही रहना" कह पता

लेकिन साइकिल बहुत तेजी से निकल गयी. और वो रोता हुआ अपने सीट पे बैठ गया.       

स्कूल में उसका मन एकदम नही लगता. वो चुपचाप रहता। "तुम क्यूँ उदास रहते होस्कुल में मन नही लगता? मेरा भी नहीं लगता. चलो हम दोनों दोस्ती कर लेते हैं." 

"तुमसे दोस्ती कर के क्या मिलेगा मुझे? मुझे अपने हाथी, घोड़े, राजा, रानी और गुड़िया से दूर नही रहना है दिन भर. बस और कुछ नहीं। तुम मुझे ये सब दे सकोगी?"

"नहीं। लेकिन मैं तुम्हें कुछ और दे सकती हूँ. आँखें बंद करो." 

रेहान ने आँखें बंद किया। और रेखा ने उसके हाथों में एक सेंटर फ्रेश रख दिया। स्कुल आने के बाद रेहान के चेहरे पे पहली बार मुस्कान थी

उस दिन से रेखा और रेहान दोस्त हो गए. रेखा के एक सेंटर फ्रेश के बदले में रेहान उसे रोज पहाड़ा सिखाता। 

तुम मेरे लिए सेंटर फ्रेश वाली दोस्त हुई. और तुम मेरे लिए मूड फ्रेश वाले दोस्त हुए.  

दोनों बड़े हो रहे थे.   

उस दिन रेहान ने देखा कि उसकी सेंटर फ्रेश वाली दोस्त ने राहुल को सेंटर फ्रेश दे दिया. उसे पता नही चला ऐसा क्यों हुआ किया था

रेहान कुछ नही बोला बस उस दिन उस से बात नही की. अगले दिन वो लता को न्यूटन का लॉ बताने लगा. पता नही रेखा को क्या हुआ? क्लास में दोनों ने बात नही की. अगले दिन टिफ़िन के समय रेखा सेंटर फ्रेश ले के रेहान के पास पहुंची। 

रेहान ने सेंटर फ्रेश ले लिया। पर उसने उस से कोई बात नही की. रेखा भी बिना कुछ बोले चली गयी. स्कुल बस में रेहान ने देखा उसकी सेंटर फ्रेश वाली दोस्त बस के पीछे वाली सीट चुप चाप बैठी है. वो उसके पास गया

"हेलो। रेहान ने बोला।" रेहान का इतना बोलना था कि रेखा के आँखें झर झर बहने लगीं। 

"चलो तुमको न्यूटन का लॉ पढ़ाता हूँ." रेहान बोला। और रेखा ने बिना कुछ बोले हाँ में सर हिला दिया। 

बस घर पहुँच गयी. उस दिन के बाद से अब तक रेखा ने किसी और को सेंटर नही दिया और रेहान ने किसी और कुछ नही पढ़ाया।                     

वो साथ साथ आगे बढ़ते गए. बारहवीं में पहुँच गएरेखा, रेहान के लिए अभी भी सेंटर वाली दोस्त बनी रही और रेहान उसका मूड फ्रेश वाला दोस्त

अब उनकी बारहवीं  के एक्जाम नजदीक गए

तभी एक दिन मुज़फ्फरनगर में जाट और मुस्लिम समूदाय के बीच दंगे छिड़ गए. रेहान के अब्बू, अम्मी को मार दिया गया. उसकी बहन का उसके सामने रेप हुआ और फिर उसे भी मार दिया गया. रेहान कि दुनिया उजड़ गयी थी. कोई नही बचा उसके परिवार में

मुज़फ्फरनगर के राहत शिविर में रह रहे लोग उसके नए परिवार हो गए. उसकी सेंटर फ्रेश वाली दोस्त शहर में रह गयी. वो राहत शिविर में रहने लगा
A so-called relief camp, Google Images
अपने परिवार के लोगों को खोने का ग़म और बारहवीं की परीक्षा दे पाने का डर। उसके सामने कोई रास्ता नही दिखा रहा था. उधर रेखा को मालूम नही था एक ही रात ने रेहान के लिए कितना कुछ बदल दिया था

उसके परिवार वाले उसे रेहान के मोहल्ले में नही जाने देते। वो पता करना चाहती थी रेहान कि घर कि क्या हालत है. रेहान कहाँ है? लेकिन उसे उसके मोहल्ले में जाने की इजाजत नही थी

आज पहली बार रेखा को अपने हिन्दू होने का दुःख हो रहा था

रेहान को कुछ समझ नही रहा था. उसे पता थे अगर वो अपने सेंटर फ्रेश वाली दोस्त को ये सब बताता तो वो जरूर कुछ करती। कम से कम किताबें जरुर दे जाती। 

लेकिन वो कैसे बताता। उसके पास उसका फ़ोन नंबर तो था लेकिन उसके पास फूटी कौड़ी भी थी जिस से वो उए फोन कर सकता। 

एसटीडी वालों ने कॉल रेट काफी बढ़ा दिए थे. नवम्बर दिसंबर का महीना था. कड़कड़ाती ठण्ड में लगभग रोज रेहान अपने सामने कुछ नवजात बच्चों को दम तोड़ते देखता। उसके आँखों में खून के आंसू बहते। वो असहाय था

उसे अपने गाँव जाने में डर लगता था. उसे डर था जलते हुए दंगे के आग में वो भी जल जाये। बस वो चाहता थे बस एक बार रेखा से बात हो जाये, और उस से कुछ किताबें माँगा कर वो पढाई कर सके ताकि वो एक्जाम में पास हो सके.  

बहुत सारे ऑफिसियल्स और पत्रकार उसके राहत शिविर में आते और जाते। उसकी हिम्मत नही हुई किसी से फ़ोन मांग के रेखा को फ़ोन कर सके. एक दिन हिम्मत कर के एक पत्रकार से उसने फ़ोन मांग ही लिया और रेखा को फोन लगा दिया। 

रेखा को जैसे ही पता चला कि रेहान कहाँ है वो अपने कोर्से के सारे किताबें ले के जाने लगी. उसके पापा ने फिर उसे मना किया। वो नहीं मानी। तभी उसके गाँव के कुछ और लोग गए

"तुम नहीं जा सकती। वो एक मुस्लमान है. हम तुम्हें नही जाने दे सकते। वो हमारे धर्म को ख़राब करना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि हिन्दू लड़कियों को रिझाएं और उन्हें मुस्लमान बना दें. अपना जनसंख्या बढ़ाएं। हम ये नही होने देंगे।"

"आप लोग कौन होते हैं ये तय करने वाले कि मैं कहाँ जाऊं, कहाँ जाऊं। आप उस समय कहाँ थे जब हम दोनों बचपन से साथ साथ पढ़ते रहे. आप उस समय कहाँ थे जब एक सेंटर फ्रेश के बदले में उसने मुझे इतना सारा पढ़ाया करता था

वो तो आज तक मुझे नही बोला कि मैं मुस्लमान बन जाऊं। लेकिन आपकी जिद्द और आपकी जबर्दस्ती से मुझे आज पहली बार हिन्दू होने के दुःख हो रहा है. मैं उसे किताबें पहुंचाने जाउंगी और इसमें मेरा धर्म तो ख़राब होता है ही मैं भ्रष्ट होउंगी।

लोगों को शायद रेखा कि मासूमियत पे दया गयी थी

वो अपने स्कूटी से निकल गयी. किताबें ले ली और रास्ते में उसने सेंटर फ्रेश के बड़े बड़े पॉकेट ले लिए. राहत शिविर के एक कोने में रेहान बैठ के चुप-चाप कुछ सोच रहा था जब रेखा वहाँ पहुंची थी.
Courtesy: Google  
रेखा को देख के वो खड़ा हो गया. लेकिन वो इतना सहमा हुआ था, उसकी हिम्मत नही हुई वो उस से कुछ भी बात कर सके

रेखा ने कुछ बोलना चाहा। लेकिन रेहान की आँखें नम थी और होठ खामोश। रेखा ने भी उसे ज्यादा डिस्टर्ब करना ठीक नही समझा। और किताबें और सेंटर फ्रेश रख के वहाँ से चली गयी

अब रेखा के पास कोई किताब नही बचा था. वो पढ़ नही सकी. रेहान ने परीक्षा दी. पुरे जिले में टॉप किया था. रेखा फेल कर गयी थी. लेकिन उसे आज फेल हो के भी पास होने से ज्याद संतुष्टि थी

रेहान को जब पता चला रेखा फेल हो गयी है. वो उसके पास गया. दंगे की आग बुझ चुकी थी

उसने रेखा को बोला "चलो फिर से तुम मुझे सेंटर फ्रेश देना मै तुम्हें पढ़ाया करूँगा।" उनकी डील फाइनल हो गयी थी. रेखा के अंदर भी हिम्मत गयी थी

वो बोली,"साहब बस मुझे पढ़ा के बचना चाहते हैं. आपको मुझे तो पढ़ाना ही पड़ेगा भविष्य में मेरे बच्चों को भी पढ़ाना पड़ेगा। और हाँ जब वो रोयेंगे उनको सेंटर फ्रेश आपको ही ला के देना पड़ेगा।

मुज़फ्फरनगर दंगे में जलने के बाद आज पहली बार रेहान को लगा था किसी ने उसके जले पे मलहम लगाया था

"जो आज्ञा बेगम."      


नोट: ये एक काल्पनिक कहानी है. किसी भी वर्ग के भावनाओं को ठेस पहुँचाना मेरा उद्देश्य नहीं है.  


Sunday, 9 February 2014

आज पहली बार देखे थे कि वो शरमा रही थी................

जब आईआईएमसी ने पूरी शहर के शैक्षणिक भ्रमण पे भेजा तो ये पहला मौका था जब मै समुद्र को नजदीक से देखने वाला था. 

चिरकुट तो हम शुरुए से थे, हियाँ पर भी मेरी चिरकुटई जारी रही. सब लोग लहरों से खेल रहे थे, हम समुद्र से ही बात करने लगा. 

बिकुआ मेरा दोस्त था. किनारे पे बैठ मैं जब लहरों से बात कर रहा थे बिकुआ सामने नहा रहा था. और वो भी बगल में पानी से खेल रही थी. 

एका एक बिकुआ मुझे बैठा देखा तो मेरे पास आ के बैठ गया. वो उसी तरफ देख रहा था जिस तरफ लहरों के साथ वो खेल रही थी. 

"तुझे देखा तो ये जाना सनम....." गुनगुना रहा था बिकुआ. "ई का रे," हम पूछे. 

वो बिना कुछ बोले भाग गया फिर से पानी में. एतना चहक रहा था. अपनी चहचहाट में मेरी सुना भी नही रहा था. खैर सब आईआईएमसी लौट गए.

आईआईएमसी ने दोबारा पूरी भेजने का जब प्लान बना तो इतेफाक से तारीख 8 फरवरी को चुना गया.

सुबह सुबह ही फलिपकार्ट वालों ने "प्रोपोज डे पे उनको गिफ्ट कीजिये" वाला मेल भेजा था. सो मुझे पता था आज प्रोपोज डे है.

धौलीगिरी और रघुराजपुर होते हुए जब हम पूरी समुद्र के किनारे पहुंचे तब तक 2.30 बज चुके थे. बिकुआ तो तुरत पानी में उतर गया.

पता नहीं वो कहाँ थी, दिखी नही. हम भी आधे घंटे पानी में रहने के बाद किनारे पे आ के देखने लगे. हम सोच रहे थे कि वो कहाँ गयी. आज बिकुआ अकेले क्यों दिख रहा था.

तभी देखे वो रिक्शे से उतरी. और लपक के उधर जाने लगी जिधर हमारे बैच के लोग नहा रहे थे. बिकुआ उसे देखा तो स्थिर खड़ा हो के उधर ही देखने लगा.


वो भी उसे देख चुकी थी. धीरे धीरे लहरों में बहने के बहाने बिकुआ उस तरफ जाने लगा और वो इस तरफ आने लगी. वो दोनों एक दूसरे कि तरफ बढ़ने में व्यस्त थे, हम और चाचा उनको देखने में और सारी दुनिया अपने आप में.

अब दोनों एक फिट की दुरी पे खड़े थे. अचानक से एक लहर आयी और वो लहरों के साथ बिकुआ पे गिर पड़ी. बेचार बिकुआ. सम्भाल नहीं पाया. वो भी गिर पड़ा.

चाचा ने मेरे से कहा, "समुद्र के नमकीन पानी में बिकुआ का प्रोपोज डे तो नमकीन हो गया."

मैंने कहा, "फ़ोटो लो चाचा. वो दोनों लहरों से लड़ेंगे और आगे जायेंगे. आज नमकीन बोल रहे हो कल मीठा बोलोगे. "

खटाक  से चाचा ने फ़्लैश चमका दिया.

हॉस्टल आने के बाद बिकुआ ने चाचा से वो फ़ोटो माँगा और वो भी मांगी. बिकुआ बोला, "उसको मत बताना कि मैंने तुमसे फ़ोटो लिया है." और वो बोली, "बिकुआ को मत बोलना."

अगले दिन सारे बच्चों ने स्टडी ट्रीप पे रिपोर्ट लिख के सबमिट कर दिया.

"किसी ने रिपोर्ट सबमिट नही भी किया है?" सर ने पूछा।

केवल दो हाथ ऊपर उठे. एक बिकुआ का और एक उसका.

"नमकिन नशे का असर अभी भी है," चाचा मेरे से बोला.             

उस दिन से अब तक लगभग पांच साल हो गए. एक दिन असाइनमेंट पे कोलकाता जाना था. चाचा को फ़ोन किया. पता चला उसे भी उस असाइनमेंट पे जाना है कोलकाता.

बिकुआ कोलकाता में ही पोस्टेड था. उसके पास ही रुकने का प्लान हुआ. पहुँच गए बिना फ़ोन किये. दिन में असाइनमेंट से लौटे और रात को हम, चाचा और बिकुआ छत पे चले गए, बतियाने.

बिकुआ के लैपटॉप में अभी भी प्रोपोज डे वाला फ़ोटो था. हम देख ही रहे थे कि वो निचे से आ गयी.

"खाना नहीं है तुम लोगों को जी," वो बोली.

हम चाहे बिकुआ कुछ बोल पाते उससे पहले चाचा बोला, "काहे हड़बड़ा रही हो? आई आईएमसी गर्ल्स हॉस्टल का गेट थोड़े है जो नौ बजे बंद करना जरुरी है." 

हम तीनों हंस पड़े. और आज पहली बार देखे थे कि वो शरमा रही थी.


नोट: एक काल्पनिक कहानी है.